वो ख़ून कहो किस मतलब का
वह ख़ून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन ना रवानी है
जो पर्वाश होकर बेहता है
वह ख़ून नहीं है पानी है
उस दिन लोगों से सही सही
ख़ून की क़ीमत पेहछानी थी
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
माँगी उनकी क़ुर्बानी थी
बोले स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हे करना होगा
बहुत जी चुके हो जग में
अब आगे मरना होगा
आज़ादी के चरणों मे जो
जैमाल चढ़ाई जाएगी
वह सुनो तुम्हारे सीशों के
फूलों से गूनती जाएगी
आज़ादी का संग्राम कहीं
पैसे पैर खेला जाता है
एह शीश काटने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है
dont remeber much after this.. but by far it was one of the best patriotic poems we had ever read during our school days..
6 Comments:
truely said......i believe even after 60 years of independence, we still need such mentors like netaji to awake the feeling of patriotism in us......
sahi hai bhidu! kraanti ki tyariyan karo.....bahut ho gaya nautanki
This comment has been removed by the author.
@ Minu - yes its true, we need mentors like Netaji to steer us smoothly in reaching our target of becoming a developed nation..
@Rakesh- Kranti to ISM mein hi aa gayee thi, RDB ke show ke din, jab Lalaji ke uper lathiya pad rahi thi..bolo to fir se laate hai kranti..
tu yaar mere comments ka reply nahi karta :(
sahi memory hai teri
maine bhi yeh poem padha tha but yaad nahi
@voice - JAWAB ;0
ab shikayat mat karna
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home